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ते ताही और बरसात

ब हुत पुरानी बात है। दादी की दादी की दादी से भी बहुत-बहुत पहले की। सफेद बादलों के देश में एक बार खूब बारिश हुई, खूब।  इतनी की सब जल-थल हो गया । एक गांव  (Kainga)  था जिसमें बसने वालों ने कहना शुरू कर दिया कि यह बारिश ते ताही ही लेकर आई है। ते ताही ने अपने जादू से सारी धरती को डुबो देने जितनी बारिश करवाई है।  ते ताही गांव में रहने वाला एक युवक था जिसके बारे में गांव के लोग कहते थे कि वह जादू जानता है। भारी बारिश से परेशान गांव वालों ने तय किया कि ते ताही को गांव से दूर कहीं छोड़ दिया जाए ताकि बारिश रुक जाए और बगीचों में फिर हरियाली छा उठे, खेती संभव हो सके। गांव के कुछ लोग एक नाव पर ते ताही को बिठाकर दूर समंदर में निकल पड़े।  खेते-खेते वे एक अन्य निर्जन द्वीप पर जा पहुंचे। उन्होंने ते ताही को वहां उतार दिया और वापस लौट पड़े। ते ताही ने जब जाना कि उसे अकेला छोड़ दिया गया है तो उसने सीटी बजाकर व्हेलों को तट के पास बुलाया और उनकी पीठ पर सवार होकर अपने गांव लौट आया।  व्हेल  तेज़  तैरती है सो वह उस नौका से पहले पहुंच गया जो उसे छोड़ने गई थी। जब नाव वापस पहुंची तो उस पर सवार लोगों ने

चार मित्र |

बहुत दिन पहले की बात है। एक छोटा-सा नगर था, पर उसमें रहने वाले लोग बड़े दिल वाले थे। ऐसे न्यारे नगर में चार मित्र रहते थे। वे छोटी उमर के थे, पर चारों में बड़ा मेल था। उनमें एक राजकुमार, दूसरा राजा के मंत्री का पुत्र, तीसरा साहूकार का लड़का और चौथा एक किसान का बेटा था। चारों साथ-साथ खाते-पीते और खेलते-घूमते थे। एक दिन किसान ने अपने पुत्र से कहा, "देखो बेटा, तुम्हारे तीनों साथी धनवान हैं और हम गरीब हैं। भला धरती और आसमान का क्या मेल !" लड़का बोला, "नहीं पिताजी, मैं उनका साथ नहीं छोड़ सकता। बेशक यह घर छोड़ सकता हूं।" बाप यह सुनकर आग-बबूला हो गया और लड़के को तुरंत घर छोड़ चले जाने को कहा। लड़के ने भी राम की भांति अपने पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर ली और सीधा अपने मित्रों के पास जा पहुंचा। उन्हें सारी बात बताई। सबने तय किया कि हम भी अपना-अपना घर छोड़कर साथ रहेंगे। इसके बाद सबने अपने घर और गांव से विदा ले ली और वन की ओर चल पड़े। धीरे-धीरे सूरज पश्चिम के समुन्दर में डूबता गया और धरती पर अंधेरा छाने लगा। चारों वन से गुजर रहे थे। काली रात थी। वन में तरह-तरह की आवाजें

चोर

चोर एक घर में घुसा। उस समय वहाँ टेलीविज़न चल रहा था। टेलीविज़न पर राष्ट्रीय गान आरंभ हो गया। चोर सावधान की मुद्रा में वहीं सावधान खड़ा हो गया। गृहस्वामी ने उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। न्यायाधीश महोदय ने देशभक्ति के पारितोषिक स्वरूप चोर को इज्जत सहित बरी कर दिया और गृहस्वामी को राष्ट्रीय गान का अपमान करने पर सज़ा सुना दी

प्याज़

बहुत सारा प्याज़ काटने बैठ जाती थी माँ। कहती थी मसाला भूनना है। दीदी को भी बड़ा प्यारा लगता प्याज़ काटना। तब समझ नहीं पाती थी इतना अच्छा क्या है प्याज़ काटने में आज पूछती है बेटी क्या हुआ? और वो कह देती है कुछ नहीं प्याज़ काट रही हूँ।

तुम शादी मत करना।

अफसर ने अफसरी  छांटते हुए  ऑफिस के क्लर्क  को डांटते हुए कहा- बहुत हो गया कितनी छुट्टियां  ले चुके हो? दो बार विदाउट  पे हो चुके हो कभी ससुराल जाना कभी बच्चे को स्कूल में भर्ती कराना कभी मां बीमार कभी साले की सगाई कभी साली की गोद-भराई न जाने कैसे-कैसे बहाने बनाते हो! महीने में पंद्रह  दिन ऑफिस आते हो क्लर्क को  कोई फर्क नहीं पड़ा  बेशर्मी से  मुस्कुराकर बोल पड़ा सर! एक बार और छुट्टी दे दीजिए आप तो दयालु हैं कृपा कीजिए आगे से छुट्टी पर नहीं जाऊंगा दरअसल सरकारी नौकरी वालों को शादी जल्दी हो जाती है यहां आपका हुक्म चलता है वो घर पर चलाती है  यहां आपके अंडर में रहता हूं  वहां उसके अंडर में रहता है इसलिए तो मैं कुंवारों से कहता हूं अपने हाथों अपनी जिंदगी तबाह मत करना कोई कितना भी लालच क्यों ना दे मगर भूलकर भी जा तुम शादी मत करना। 

तुम मेरी बेटी जैसी हो

तुम मेरी बेटी जैसी हो, ये कहना बहुत आसान है इन शब्दों का लेकिन अब यहां, कौन रखता मान है! इसी एक झूठे भ्रम में खुश हो लेती है वो नादान है कहने में क्या, कहते तो सभी बेटी को वरदान है। कहने और करने में, फर्क बहुत बड़ा होता है बेटियों को भार न समझना मुश्किल जरा होता है। इस दुनिया में लोगों का, दिल कहां बड़ा होता है! भेड़िया इंसान के रूप में हर मोड़ पर खड़ा होता है। नन्ही सी जान के दुश्मन को कौन कहेगा इंसान है! गर्भ से लेकर जवानी तक उस पर लटक रही तलवार है प्यार बांटने वाली बेटी को क्यों नहीं मिलता प्यार है! उसकी हर एक बात पर उठते हर रोज यहां सवाल है न जाने कब जागेगी दुनिया सुनके उसकी चीख पुकार है। उसकी इस व्यथा वेदना का कब होगा स्थाई समाधान है! जो कोख में नहीं मरती वो हर रोज यहां मरती है अपने अरमानों के संग हरपल थोड़ा-थोड़ा बिखरती है। सुरक्षा की कसम खाके भी हम रक्षा नहीं कर पाते हैं उसके हक के लिए बस खोखले नारे ही लगाते हैं 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का चलता हर रोज अभियान है।

आदि काल से बस यूँ ही, चला आ रहा खेल।

आदि काल से बस यूँ ही, चला आ रहा खेल। बनने और बनाने की, चलती रेलम पेल।। चलती रेलम पेल, दाँव जब जिसका चलता। कहते उसको बुद्धिमान, वही सभी को छलता।। कहे भोला भुलक्कड़, जिस पर हँसे जमाना। कोई मूरख कहता उसको, कहता कोई दीवाना।। मूर्ख यहाँ कोई नहीं, बनते सब होशियार। एक दूसरे से अधिक, अकल सभी में यार।। अकल सभी में यार, एक से एक सयाना। बात बात में सब करे, एक से एक बहाना।। कहे भोला भुल्लकड़, प्रभु बस इतना बतला देना। मूर्ख कहे यदि दुनिया, खुद पर हँसना सिखला देना।। - गोलोक विहारी राय