आए प्रचंड रिपु, शब्द सुना उन्हीं का,

आए प्रचंड रिपु, शब्द सुना उन्हीं का,
भेजी सभी जगह एक झुकी कमान। 
ज्यों युद्ध चिह्न समझे सब लोग धाये,
त्यों साथ थी कह रही यह व्योम वाणी॥
"सुना नहीं क्या रणशंखनाद ?
चलो पके खेत किसान! छोड़ो।
पक्षी उन्हें खांय, तुम्हें पड़ा क्या?
भाले भिड़ाओ, अब खड्ग खोलो। 
हवा इन्हें साफ़ किया करैगी,-
लो शस्त्र, हो लाल न देश-छाती॥"
स्वाधीन का सुत किसान सशस्त्र दौड़ा,-
आगे गई धनुष के संग व्योमवाणी।


(2)
छोड़ो शिकारी! गिरी की शिकार, 
उठा पुरानी तलवार लीजै। 
स्वतंत्र छूटें अब बाघ भालू,
पराक्रमी और शिकार कीजै। 
बिना सताए मृग चौकड़ी लें-
लो शस्त्र, हैं शत्रु समीप आएं ॥"
आया सशस्त्र, तजके मृगया अधूरी;
आगे गई धनुष के संग व्योमवाणी॥


(3)
"ज्योनार छोड़ो सुख की, रईसो!
गीतांत की बाट न वीर! जोहो। 
चाहे घना झाग सुरा दिखावै,
प्रकाश में सुंदरि नाचती हों। 
प्रासाद छोड़, सब छोड़ दौड़ो,
स्वदेश के शत्रु अवश्य मारो।"
सर्दार ने धनुष ले, तुरही बजाई; -
आगे गई धनुष के संग व्योमवाणी॥

(4)
राजन! पिता की तब वीरता को,
कुंजों, किलों में सब गा रहे हैं। 
गोपाल बैठे जहँ गीत गावैं ,
या भाट वीणा झनका रहे हैं॥
अफ़ीम छोड़ो, कुल-शत्रु आए-
नया तुम्हारा यश भाट पावैं।"
बंदूक ले नृप-कुमार बना सु-नेता,
आगे गई धनुष के सँग व्योमवाणी॥

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